पुस्तक समीक्षा का प्रारूप (Format of Book
Review)
पुस्तक समीक्षा
१. पुस्तक का नाम :-
२. लेखक :-
३. प्रकाशक का नाम, प्रकाशन
स्धल :-
४. प्रकाशन वर्ष :-
५. आवृत्ति :-
६. आई एस बी एन न० :-
७. पुस्तक का मूल्य
:-
८. पुस्तक का सारांश:- (कम से कम २० – २५ लाइन )
९. निष्कर्ष :- (कम से कम २ – ३
लाइन )
१०. सुझाव :– पुस्तक के बारे में आपकी राय औरआप पुस्तक के बारे में दूसरों
को क्या बताएँगे?
नाम :-
कक्षा:–
पुस्तक-समीक्षा : गबन
लेखक प्रेमचंद
प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स
प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :272
प्रेमचंद वर्ग विशेष के नहीं, जन-सामान्य के लेखक
थे। सामाजिक समस्याओं को उजागर करना उनके औपन्यासिक लेखन का मुख्य ध्येय रहा। ग़बन
का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव। ‘ग़बन’ की नायिका, जालपा, एक
चन्द्रहार पाने के लिए लालायित है। उसका पति कम वेतन वाला क्लर्क है यद्यपि वह अपनी
पत्नी के सामने बहुत अमीर होने का अभिनय करता है। अपनी पत्नी को संतुष्ट करने के
लिए वह अपने दफ्तर से ग़बन करता है और भागकर कलकत्ता चला जाता है जहां एक कुंजड़ा
और उसकी पत्नी उसे शरण देते हैं। डकैती के एक जाली मामले में पुलिस उसे फंसाकर
मुखबिर की भूमिका में प्रस्तुत करती है। उसकी पत्नी परिताप से भरी कलकत्ता आती है
और उसे जाल से निकालने में सहायक होती है। इसी बीच पुलिस की तानाशाही के विरूद्ध एक
बड़ी जन-जागृति शुरू होती है। इस उपन्यास में विराट जन-आन्दोलनों के स्पर्श का
अनुभव पाठक को होता है। लघु घटनाओं से आरंभ होकर राष्ट्रीय जीवन में बड़े-बड़े
तूफान उठ खड़े होते हैं। एक क्षुद्र वृत्ति की लोभी स्त्री से राष्ट्र-नायिका में
जालपा की परिणति प्रेमचंद की कलम की कलात्मकता की पराकाष्ठा है। ग़बन प्रेमचन्द के
एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति
पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर विषयक प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे
में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। इन्होंने समझौता परस्त और
महत्वाकांक्षा से पूर्ण मनोवृत्ति तथा पुलिस के चरित्र को बेबाकी से प्रस्तुत करते
हुए कहानी को जीवंत बना दिया गया है।
पुस्तक समीक्षा: ज़िंदगी की गुल्लक
लेखिका: मनीषा श्री
मूल्य: `150 (पेपरबैक)
प्रकाशक: एपीएन
प्रकाशन, डब्ल्यू ज़ेड-87 ए, गली नंबर-4, हस्तसाल रोड, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
ज़िंदगी की गुल्लक (क़िस्से कविताओं के), जैसा कि इस किताब का नाम है, बिल्कुल उसी
तरह इसे बनाया गया है. इसे कविता संग्रह कहना इसलिए उचित नहीं होगा कि इसमें
कविताएं तो हैं, पर वे अपनी कहानियों के साथ हैं. 21 कविताओं वाली इस किताब में
मनीषा ने हर कविता के साथ, कविता से भी बड़ा एक ऐसा डिस्क्रिप्शन दिया है, जो उस
कविता के जन्म लेने की कहानी है या फिर उस कविता में आए जज़्बात की ज़मीन है. यह
किताब किसी डायरी की तरह प्रतीत होती है, जो आपको मनीषा के जीवन और उनकी सोच के
भीतर झांकने का मौक़ा देती है. इस लिहाज से पुस्तक का नाम सही प्रतीत होता है कि यह
उनके अनुभवों की गुल्लक है. जीवन और उसके अनुभव से जुड़ी ये कविताएं और इनकी कहानी
रुचिकर हैं, पर वे आपके दिलो-दिमाग़ पर गहरी छाप छोड़ जाती हों, ऐसा नहीं होता.
हां, इस किताब को पढ़ते हुए आप अपनी ज़िंदगी के किसी बीते हुए लम्हे में ज़रूर
पहुंच जाते हैं और उन्हें याद करने लगते हैं, जो पुस्तक को सार्थक बना देता है.
पुस्तक की लेखिका ने ख़ुद भी स्पष्ट किया है कि ये उनके अंदर की वह आवाज़ है, जिसे
उन्होंने अपनी डायरी में दबा रखा था. असमंज, मां और टुकड़े इन तीन कविताओं के भाव
अच्छे बन पड़े हैं. यह बात भी सच है कि कविता में कहानी और कहानी में कविता के रूप
में यह एक अभिनव प्रयोग है. यदि आप एक नए प्रयोग के रूप में इस पुस्तक को पढ़ना
चाहेंगे तो निराशा नहीं होगी.
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